Caste Census : बिहार चुनाव से मोदी सरकार का बड़ा फैसला , जाति जनगणना को कैबिनेट की मंज़ूरी

 

Caste Census : बिहार चुनाव से पहले मोदी सरकार का बड़ा फैसला , जाति जनगणना को कैबिनेट की मंज़ूरी |

Government announce Caste Census


भारत में जाति जनगणना एक बार फिर राष्ट्रीय बहस का केंद्र बन गई है। सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि आगामी जनगणना में जातिगत विवरण शामिल किया जाएगा, जो 1931 के बाद पहली बार होगा। यह निर्णय सामाजिक न्याय, राजनीतिक समीकरण और आरक्षण नीति पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है।


🏛️ सरकार का दृष्टिकोण: ऐतिहासिक बदलाव

30 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार ने घोषणा की कि आगामी जनगणना में जाति आधारित आंकड़े एकत्र किए जाएंगे। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों ने अपनी जाति आधारित सर्वेक्षण प्रकाशित किए हैं, और विपक्षी दलों का इस पर दबाव बढ़ता जा रहा थाThe Economic Times

इससे पहले, सरकार जातिगत आंकड़े एकत्र करने से हिचकिचाती रही थी, यह तर्क देते हुए कि इससे सामाजिक तनाव बढ़ सकता है। हालांकि, अब सरकार का मानना है कि विस्तृत जातिगत जानकारी सामाजिक कल्याण योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करने में मदद करेगीPBS: Public Broadcasting Service


🗳️ विपक्ष का रुख: दबाव और श्रेय की होड़

विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यूनाइटेड) ने लंबे समय से जाति जनगणना की मांग की है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार के निर्णय का स्वागत करते हुए इसे विपक्ष के दबाव का परिणाम बताया और इसकी समयसीमा की मांग कीThe Economic Times

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले ही राज्य स्तर पर जाति सर्वेक्षण करवा चुके हैं, जिसके आंकड़े नवंबर 2023 में सार्वजनिक किए गए थे


📜 ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: 1931 से 2025 तक

भारत में अंतिम पूर्ण जाति जनगणना 1931 में हुई थी। 1951 से अब तक केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना होती रही है। 2011 में एक सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) हुई थी, लेकिन इसे जनगणना अधिनियम 1948 के तहत नहीं किया गया था, जिससे इसकी वैधता और उपयोगिता पर सवाल उठेWikipedia

🧪 बिहार और कर्नाटक के अनुभव

बिहार सरकार ने 2022 में एक जाति आधारित सर्वेक्षण कराया, जिसे पटना उच्च न्यायालय ने वैध और कानूनी माना। इस सर्वेक्षण के आधार पर बिहार सरकार ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण को 65% तक बढ़ाने का प्रस्ताव पारित किया, जिसे बाद में उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित कर दिया।

कर्नाटक में, 2015 में कराए गए जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई है, संभवतः प्रमुख जातियों के विरोध के कारण।


✅ संभावित लाभ

  • नीतियों का सटीक निर्धारण: विस्तृत जातिगत आंकड़े सामाजिक कल्याण योजनाओं को लक्षित और प्रभावी बनाने में मदद करेंगे।

  • सामाजिक असमानताओं का खुलासा: जातिगत आंकड़ों से यह स्पष्ट होगा कि कौन-से वर्ग सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, जिससे सुधारात्मक कदम उठाए जा सकते हैं

  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व में सुधार: जाति आधारित आंकड़े राजनीतिक प्रतिनिधित्व में संतुलन स्थापित करने में सहायक हो सकते हैं।


⚠️ संभावित चुनौतियां

  • सामाजिक विभाजन का खतरा: जाति जनगणना से सामाजिक तनाव और विभाजन की संभावना बढ़ सकती है

  • राजनीतिक दुरुपयोग: जातिगत आंकड़ों का राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है।

  • आरक्षण नीति पर प्रभाव: विस्तृत आंकड़ों के आधार पर आरक्षण की मांगें बढ़ सकती हैं, जिससे वर्तमान नीति पर पुनर्विचार आवश्यक हो सकता है।

📊 डेटा आधारित गवर्नेंस की दिशा में कदम

जाति जनगणना के माध्यम से सरकारें "डेटा आधारित नीति निर्माण" (data-driven governance) की ओर बढ़ सकती हैं। आज जब सरकार डिजिटल इंडिया, स्मार्ट गवर्नेंस जैसे अभियान चला रही है, तब सामाजिक असमानताओं को आंकड़ों के आधार पर हल करना समय की मांग है।


🌐 डिजिटल जनगणना की संभावना

2025 में संभावित अगली जनगणना को डिजिटल माध्यम से करने की योजना बनाई जा रही है। यदि इसमें जातिगत आंकड़े भी शामिल होते हैं, तो यह एक ऐतिहासिक कदम होगा — जहां पहली बार जातिगत डेटा को आधुनिक तकनीक के सहारे संग्रहित और विश्लेषित किया जाएगा।


🔍 निष्कर्ष

जाति जनगणना का निर्णय भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम हो सकता है, बशर्ते इसे सावधानीपूर्वक और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाए। सरकार और समाज दोनों के लिए यह आवश्यक है कि इस प्रक्रिया को सामाजिक समरसता और विकास के लिए उपयोग में लाया जाए, न कि विभाजन के लिए।

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